वो जा रहा वक्त…..
एक्सप्रेस की रेल पर,
ज़िंदगी महज़ सफर करती है……
पैसेंज़र ट्रेन पर !
कोई ख्वाहिश का नज़ारा असमानो मे हो अगर,
बाहर खिडकी से ताकते हैं सब
यूं बैठ अपनी बर्थ पर !!
कुछ ज़िंदगियां बैठती सामने की शीट पे,
फिर तस्सवुर हसीन होते आंखो की कनकियों से !
वक्त का फिर ना कोई ख्याल होता है ,
हम धीमे है या तेज़ नही उसके जैसे …
फिर ना इसका कोई मलाल होता है !
वक्त तेज़ चले और तेज़ चले चाहें दौडे यूं ही ,
हम ज़िंदगी जी लेते हैं इन्ही हसीन लम्हों मे ही !
सफर यूं ही ज़िंदगी का चलता रहता है….
स्टेशन आते रहते हैं लोग बिछडते रहते हैं !
यू हार कर कभी ना इस रेल से उतर जाना ….
आओ हम सब देखते हैं ,
हम सब का मुकाम कहाँ कहाँ तक है !!